Khamoshi


जब हम बार बार अपने मन की बात किसी को समझाते हैं , फिर भी सामने वाला नहीं समझता है और ना समझने कि कोशिश करता हैं , तो आखिर में हम हार जाते है , और खामोश हो जाते हैं । उन्ही जज्बातों के खामोश हो जाने पर लिखी गई यह कविता "खामोशी "।

समझ सको गर मौन मेरी तुम ,
और उतर सको गर दिल में ।
सुन सको गर शोर वहां तुम ,
और कर सको कुछ निर्णय ।
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

अगर हो एहसास तुम्हें ,
मेरे रूठने का ।
गर पूछनी हो कोई बात तुम्हें ,
मेरे इस फैसले का ।
और मना सको गर किसी जतन से ,
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

अगर याद करो तुम ,
मेरी उन बातों को ।
बौठो पास तुम ,
और खोलो सारी गांठों को ।
और सुनना चाहो उन जज्बातों को ,
फिर भी मैं निशब्द रहना चाहती हूं ।
देखो मैं अब कुछ नहीं कहना चाहती हूं ।।

      - श्री की कलम

आशा करती हूं आप सभी को यह कविता पसंद आई होगी ।
🙏










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